Thursday 19 March 2015

सुबह के ६ बजे

सुबह के ६ बजे,
हलकी ठंडी हवायो के मज़े ..
उठा हु मै बड़ी मस्सकत से ..
Nothing is as precious as a fresh morning... ☺
भोर का मिजाज़ लेने ||

रात अभी, बीती नहीं .
सूरज अभी उगा नहीं ..
भोर का आगाज़ कराने ..
पक्षियों से अब रुका जाता नहीं ..||

बाहे फैलाये, झूमती हवायो को महसूस करता ..
एक ख्याल है अक्सर दिल को छू सा जाता .,
की महज ये दिन रात नहीं ..
अंत और शुरुवात भी है ..||

अंत है विचारो का जो पुरानी हो चुकी है ..|
अंत है खयालो का जो हिम्मत हार बैठी है ..|
उगता सूरज है लाता हर दिन एक नयी शुरुआत ..
सुनहरी किरने है कराती नयी जोश का आगाज़ ||

सड़के पड़ी है अभी थोड़ी वीरानी ..,
कुछ ही पल ने बदल जाएगी इनकी कहानी ..|
भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी, बढती आबादी , बढ़ते शौक ..
कर देंगे इस भोर को आज की दुपहरी ..||

ज़िन्दगी की रफ्तार

Life worth remembering...
बुलेट से तेज दौड़ती ये ज़िन्दगी ,
इससे पहले की कुछ महसूस हो ..,
दिल चीरकर वक़्त निकाल ले जाती है ..|

शुक्रगुजार हूँ मैं उन यादों का .,
जो एक अरसे तक उस वक़्त का एहसास दिलाती है ||

तन्हाई का आनंद

मुझे अकेलापन बहुत पसंद है,
Dighi Hills, Pune
खुद से बाते करने का अलग ही आनंद है |
एक पल की शांति एक अरसे का एहसास दिलाती है ..
मन के हर तार को जब खुले विचारो से मिलाती है |

पहाड़ की उचाईयो पर बैठे कभी शाम के मज़े लेना..
इस छोटी सी दुनिया का खुले आसमान से मिलन देखना ..
सूरज की रौशनी को अंधेरो में घुलते देखना ..
और रोज़ की व्यस्त जिंदगी के नाम एक हलकी सी मुस्कराहट देना |

आसमान के चमकते तारो को घूरते ही रहना ..
सौंधी सी उस ताज़ी हवा को सीने में भरना और सोचना ..
किसकी है ये अनमोल रचना ..? ||

ईश्वर

कहते है एक शक्ति है जो इस श्रृष्टि को बंधती है,
एक कारण है जो हर परिणाम की वजह है ,
एक ऐसी रचना है जो विज्ञान के विवेक से परे है..|

इसे हम इश्वर कहते है,
इसी ने हमे धरती पर जल, वायुं, पर्यावरण दिया,,
और हमने इसी धरती को बांट दिया, खरीद लिया, बेच दिया || ☺

आज का दौर (व्यंग्य)

ये लेखनी उस रफ़्तार के नाम,
जो आज की दौर में है आम |
गर जो गलती से भी रह गए पीछे आप ,
स्थिर ही करार कर देगी आपोको ये आवाम ||

दिन दुनी रात चौगुनी , विज्ञान की ये प्रगति

देती है आपको आपका मूल्य, आपकी पहचान |
जो कल तक थी नये अविष्कार और खोज के नाम,
आज आती है महज आपके सहूलियतो के काम ||

अब गए जमाने चरखा चलने के ,

लकड़ी के पंखो से हवा खाने के |
अब तो है विशुत पंखे और कूलर आपकी सेवा में,
जो मन इठलाये तो एक इशारा करे वातानुकूलक लगाने के ||

Thursday 24 January 2013

एक बच्चे का दिल ......



मन का यूं  विचलित होना ..,
घबराता है दिल का कोना कोना ...,
कुछ पाने की चाह तो है .., पर 
सहमा दिल चाहता है .., कुछ न खोना ..।।


तुम कहाँ से आये हो .., सदियों से सबको भाए हो ..,
क्या तुम्हे नहीं डर दुनिया का .., 
आँशु भी मोती बने ...., 
अपने साथ इतनी  खुशियां  लाये हो ।।


जब भी मै तुम्हे देखता हूँ  ..,
तुम्हारी तरह बनना चाहता हूँ ..,
तुम्हारे सच्चे दिल से धड़कना चाहता हूँ...,
मेरा रोम रोम खिल उठता है .., जब भी तुम्हे प्रसन्न देखता हूँ..।।


तुम एक अवस्था हो जिससे हर जीवन गुजरता है ..,
आज तुम हो कल मै भी था .., यह पहिया चलता रहता है ...,
इतनी सच्चाई , इतना भोलापन .., इतनी मासूमियत ..,
कैसे कहु यह बालक नहीं श्रिस्टी रचैता हैं ...।।



आज असंख्य विचार मेरे मन में दौड़ते हैं ..,
कभी असफलता के अंधियरो से डरता हूँ.., कभी जिम्मेदारियों से ..,
तो कभी सफलता के उजियारो से ..,
कभी ठोकर खाकर गिरने का डर है .., तो कभी लोगो के ठहाको का ..,
तुम्हारी ओर देखते ही .., ये सब ख्याल निपट जाते हैं..,
दुविधा के सारे बादल सिमट जाते हैं ...,

सफलता - असफलता से रौशनी हट ..,
कर्म मात्र की निपुणता पर केन्द्रित हो जाते हैं ...।।



अब तक कितने ही व्यक्तियों को अपना आदर्श माना ..,
पर जब भी अंदर झाका .., एक हिस्सा गलत ही पाया ..,
जी करता था उनकी ही तरह बनू .., 
पर तुम्हे देखा तो पाया .., अपना जीवन स्वयं ही है जीना ।।

पाने की ललक !



आँखों में चमक थी ..., 

           तो दिल में क्यों न आई ..,
कुछ पाने की ललक थी।,
           तो वो धुन क्यों न समायी ..
इतिहास ही रचना था जब मेरे सपनो को ...
           तो कदमो को चोट आते ही .., 
                   आँखों में अंशु क्यों है भर आई ..।।।